[Reader-list] आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल पर लगी पाबंदी पर अरुंधति रॉय का बयान

Asit Das asit1917 at gmail.com
Mon Jun 1 00:46:26 CDT 2015


 आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल पर लगी पाबंदी पर अरुंधति रॉय का बयान
<http://hashiya.blogspot.in/2015/05/Arundhati-On-Ambedkar-Periyar-IIT-Madras-Ban.html>
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hashiya blog

<http://1.bp.blogspot.com/-KIKdaZ3UsFc/VWmNecxCLpI/AAAAAAAADKg/SvaGkdefMYA/s1600/ambedkar%2Bperiyar.jpg>

*कार्यकर्ता-लेखिका अरुंधति रॉय ने यह बयान आईआईटी मद्रास द्वारा छात्र संगठन
आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल पर लगाई गई पाबंदी (नामंजूरी
<http://www.countercurrents.org/apsc290515.htm>) के संदर्भ में जारी किया
है. एक दूसरी खबर के मुताबिक, एपीएससी को लिखे अपने पत्र
<http://www.thenewsminute.com/article/you-have-touched-nerve-arundhati-roy-tells-student-body-derecognized-iit-madras>में
भी उन्होंने यही बात कही है कि ‘आपने एक दुखती हुई रग को छू दिया है – आप जो
कह रहे हैं और देख रहे हैं यानी यह कि जातिवाद और कॉपोरेट पूंजीवाद हाथ में
हाथ डाले चल रहे हैं, यह वो आखिरी बात है जो प्रशासन और सरकार सुनना चाहती है.
क्योंकि वे जानते हैं कि आप सही हैं. उनके सुनने के लिहाज से आज की तारीख में
यह सबसे खतरनाक बात है.’ *

आखिर एक छात्र संगठन आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल (एपीएससी) में ऐसा क्या है
जिसने आईआईटी मद्रास के डीन ऑफ स्टूडेंट्स को इतना डरा दिया कि उन्हें एकतरफा
तौर पर उसको ‘डीरेकग्नाइज’ (नामंजूर) करना पड़ा?

इसकी जो वजह बताई गई वह हमेशा की तरह वही बेवकूफी भरा भुलावा है: ‘‘वे
समुदायों के बीच में नफरत फैला रहे थे.’’ छात्रों का कहना है कि जो दूसरी वजह
उन्हें बताई गई वह यह थी कि उनके संगठन के नाम को बेहद ‘राजनीतिक’ माना गया.
जाहिर है कि यही बात विवेकानंद स्टडी सर्किल जैसे छात्र संगठनों पर लागू नहीं
होती.

एक ऐसे वक्त में, जब हिंदुत्व संगठन और मीडिया की दुकानें आंबेडकर का,
जिन्होंने सरेआम हिंदू धर्म को छोड़ दिया था, घिनौने तरीके से खास अपने आदमी
के रूप में प्रचार कर रही हैं, एक ऐसे वक्त में जब हिंदू राष्ट्रवादी घर वापसी
अभियान (आर्य समाज के ‘शुद्धि’ कार्यक्रम का एक ताजा चेहरा) शुरू किया गया है
ताकि दलितों को वापस ‘हिंदू पाले’ में लाया जा सके, तो ऐसा क्यों है कि जब
आंबेडकर के सच्चे अनुयायी उनका नाम या उनके प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं तो
उनकी हत्या कर दी जाती है, जैसे कि खैरलांजी में सुरेखा भोटमांगे के परिवार के
साथ किया गया? ऐसा क्यों है कि अगर एक दलित के फोन में आंबेडकर के बारे में एक
गीत वाला रिंगटोन हो तो उसे पीट पीट कर मार डाला जाता है? क्यों एपीएससी को
नामंजूर कर दिया गया?

ऐसा इसलिए है कि उन्होंने इस जालसाजी की असलियत देख ली है और मुमकिन रूप से
सबसे खतरनाक जगह पर अपनी उंगली रख दी है. उन्होंने कॉरपोरेट भूमंडलीकरण और
जाति के बने रहने के बीच में रिश्ते को पहचान लिया है. मौजूदा शासन व्यवस्था
के लिए इससे ज्यादा खतरनाक बात मुश्किल से ही और कोई होगी, जो एपीएससी ने की
है- वे भगत सिंह और आंबेडकर दोनों का प्रचार कर रहे थे. यही वो चीज है, जिसने
उन्हें निशाने पर ला दिया. यही तो वह चीज है, जिसे कुचलने की जरूरत बताई जा
रही है. उतना ही खतरनाक वीसीके का यह ऐलान है कि वो वामपंथी और प्रगतिशील
मुस्लिम संगठनों के साथ एकजुटता कायम करने जा रहे हैं.

एपीएससी की नामंजूरी, एक किस्म की *मंजूरी *है. यह इस बात की मंजूरी है कि ऐसे
रिश्ते कायम करना बिल्कुल सही और वाजिब है, जैसे रिश्ते इसने बनाए. और यह भी
कि अनेक लोग ये रिश्ते बनाने लगे हैं.

*अनुवाद: रेयाज उल हक*


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